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    विद्यार्थी जीवन एक संघर्ष

    मैं आज इस दुविधा में हूं कि क्या लिखूं। लिखने को तो बहुत कुछ है मेरे पास, सोच रहा हूं कि शुरुआत कहां से करूं। मेरे दिल में बहुत से ज्वालामुखी फूटने को आतुर हो रहे हैं ज्वालामुखी को दिल में दबा कर भी रखा नहीं जा सकता।
    जिंदगी की इस भाग दौड़ में मैं अपने आप को खो चुका हूं और ना जाने मेरे जैसे कितने छात्रों होंगे जो अपने आपको इस दुनिया में मानते ही नहीं। हमारा यहां पैदा होना ही दुर्भाग्य है यहां किसी के सपने कुचले जाते हैं कोई बेवजह उम्मीद छोड़ जाता है गाउन पर किस तरह से दबाव बनाया जाता है कि वह हताश हो जाता है आदमी के सपने ही न रहे इस तुलनात्मक दुनिया में इस भागदौड़ भरी रेस से खुद को बाहर कर लेता है
            "मैं आज बात कर रहा हूं ऐसे ही छात्रों की अपने घर को छोड़कर एक सन्यासी जैसा जीवन जीने के लिए दूसरे शहर आते हैं"
    स्कूल जीवन ही छात्र का असली जीवन होता है ,न खाने की फिक्र, ना कमाने की फिक्र ना ही कोई जिम्मेदारी। नेकिन असल जिंदगी तो कॉलेज खत्म होने के बाद शुरू होती है, जब तक कॉलेज में हो सबकी उम्मीदे सिर्फ अच्छे अंक लाने तक ही सीमित होती है लेकिन कॉलेज खत्म होने के बाद कहानी ही बदल जाती है। घर वालों और समाज का नजरिया ही बदल जाता है।
    मैं घर वालों की बात नहीं करूंगा,उनका फिक्र करना जायज है, हर मां बाप का सपना होता है उनकी संतान भी समाज में उनका नाम रोशन करे खूब तरक्की करे।बच्चो की जिंदगी बनाने के लिए वो अपना जीवन भी न्योछावर कर देते हैं।
    लेकिन ईश्वर ने समाज में एक और प्रजाति बनाई है जिसका नाम है समाज जो हमारे माता पिता के निशुल्क विधिक सलाहकार के रूप में काम करते हैं, इनकी नजर सदैव दूसरो के बच्चो पर होती है इन्हे खुद की संतान की सफलता से ज्यादा सुख दूसरो की असफलता पर होती है ,ये अंदर ही अंदर खुश और ऊपर से हितैशी होते हैं,माता पिता को उल्टी पट्टटी इन्हे से मिलती है।
    "अरे तुम्हारा लड़का आजकल क्या कर रहा है कुछ कर भी रहा है या बस नाकारा घूम रहा ,अरे तुमने इतना पढ़ाया लिखाया इतने पैसे खर्च किए और ये एक परीक्षा भी नही निकाल पा रहा ।अरे उसका लड़का देखो डॉक्टर बन गया ,गुप्ता की लड़की बैंकर बन गई ,ठाकुर का लड़का पुलिस बन गया"
    ये तो हो गई थोड़ी सी बात समाज के लोगो की।
    "मैं सिर्फ आज की वास्तविकता से आपका परिचय करा रहा हूं"
    अब बात करते है कुछ खास लोगो की....
    अरे बेटा क्या कर रहे हो आजकल,आधी उम्र तो निकल गई पढ़ते पढ़ते अब क्या पूरा जीवन पढ़ते ही रहोगे, कई वर्षो से रह रहे हो बाहर क्या कर लिया आजतक। एक परीक्षा भी तो न निकाल पा रहे हो।
    कुछ लोगो को तो इतनी उत्सुकता रहती है कि ये सुनने को मिल जाए कि एक बार फिर असफलता का सामना करना पड़ा और फिर इनको रामबाण छोड़ने का अवसर मिल जाता है 
    "अरे भैया हम भी तो इंसान ही है, ये क्यों सोच लेते हो कि अगर हम बाहर रह कर पढ़ रहे तो भगवान हो गए जो एक बार पढ़ लिया वो याद हो जाए। हमारे पास भी उतना ही दिमाग है जितना कभी आपके पास हुआ करता था,हम अपनी क्षमता से अधिक कर रहे।
    लेकिन नही सबको सफलता एक बार में ही चाहिए। हमारा सबसे बड़ा गुनाह है कि हम इस दशक में पैदा हुए उससे पहले कोई competition नही था लोगो को नौकरी आसान लगती थी।
    आज के जमाने में 10th से ही बच्चे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग जाते है।बर्बाद तो हम हो रहे ना,न घर के रहते है ना घाट के जब 10th और 12th किए तब कोई competition नही था और जैसे ही gradute हुए सारा competition एकदम लहर बन के आ गया।
    सब कहते है तेरी नौकरी कब लगेगी अब क्या बताए आप लोगो को कि कैसे जी रहे है हम आधी उम्र हो गई यही सुनते सुनते पहले तो ये बाते दिल पर नही लगती थी सोचते थे कभी न कभी हमारा भी दिन आएगा। हम तब तक हार नही मानेंगे जब तक अपनी मंजिल को हासिल न कर लें।हिम्मत तो अब भी बांधते है पर लोगो,सगे संबंधियों की कटाक्ष भरी बाते सुन कर अब कही ना कही मन उखड़ने लगता है सारे सपने धूमिल हो जाते हैं।
    अरे भाई जब उम्मीद नहीं लगा सकते तो अपने कटाक्ष अपने पास रखो क्यों किसी को हताश करते हो। ये मेरे परिवार का हक है कि डांटे फटकारे या कुछ भी करे लेकिन तुम लोग कौन होते हो भाई।दुनिया में बहुत से काम है वो तो तुमसे होते नही लगे रहते हो दूसरो की जिंदगी में तांक झांक करने की।
    क्या करें भारत की जलवायु ही ऐसी है जब तक किसी दूसरे की बुराई न कर लें किसी का मजाक न उड़ा ले पेट का खाना ही नही पचता।
    जब तुम रात में चैन की नींद लेते हो तो वही रात छात्रों के लिए सुबह होती है रात रात भर एक कुर्सी मेज लिए लगे रहते है इतिहास,भूगोल के प्रश्नों में और खेलते रहते है प्रैक्टिस सेटों के साथ।
    देश में बेरोजगारी का आलम ही कुछ ऐसा है कि 1वेकेंसी के लिए 1हजारों लड़ते है अब हजारों की किस्मत थोड़े ना बुलंद होगी ,नौकरी तो किसी एक को ही मिलेगी ना।
    लोग कुर्सियों पर बैठे बैठे बस ज्ञान ही देते है "कि अगर तुमने नौकरी नहीं पाई तो कहे की पढ़ाई" अरे भैया कुर्सी पे बैठ के ज्ञान देना बहुत आसान है। एक बार हमारी परिस्थितियों से गुजर के तो देखो,हमारी तरह रह कर तो देखो,एक बार हमारे जैसा बन कर तो देखो, एक बार हमारी तरह रात भर जाग कर तो देखो, एक बार हमारे जितना प्रेशर लेकर तो देखो, सारी बातें हवा हो जाएंगी ।
    एक बार पॉजिटिव सोच के तो देखो लोगों को प्राइवेट नही सिर्फ सरकारी नौकरी का ठप्पा चाहिए । प्राइवेट नौकरी नौकरी नहीं होती ,सरकारी नौकरी करने वाले चतुर्थ श्रेणी को सम्मान और प्राइवेट में मैनेजर होने के बाद भी समाज में कोई सम्मान नहीं....वाह री दोहरी मानसिकता वाले समाज...पैसे तो दोनो कमा रहे फिर ये भेदभाव क्यों?
    आप लोगो के तानों और कटाक्ष से ही कई विद्यार्थी तनाव में रहते है और उनके पास एकमात्र अंतिम रास्ता सिर्फ आत्महत्या होती है और वो मौत को ही अपनी मंजिल बना लेते हैं।
    कभी किसी छात्र के मन को पढ़ कर तो देखिए कभी किसी की आंतरिक तकलीफ को महसूस करके तो देखिए पता चलेगा कितना सैलाब है उसके अंदर।अगर आप उसकी तकलीफो को समझ नही सकते ,उसकी उम्मीदों को जगा नही सकते तो कृपया उसे हतोत्साहित न करें, उसके हौसलों के साथ खिलवाड़ ना करें उसे इतना कमजोर न बना दें कि वह अपनी मंजिल से ही भटक जाए ।।
    "आज मैं और मेरे जैसे बहुत से छात्र ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां पर किसी की एक छोटी से छोटी बात दिल में घाव कर जाती है किसी का छोटा से भी छोटा ताना दिल में जहर बन कर उतरता है"। 

                                  
                                                       निशांत श्रीवास्तव

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