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    "अन्नदाता किसान"

    भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहाँ की अर्थव्यस्था का मूल आधार खेतीबाड़ी ही है। इस प्रकार कहा जा सकता है भारत की नींव किसान एवं कृषि पर पूरी तरह आश्रित है। देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में भारतीय किसान की अहम भूमिका है। किसान देश की इतनी महत्वपूर्ण कड़ी होने के उपरान्त भी बड़े शर्म की बात है कि आज हमारे किसान भाई अभावों का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। भारत की 68.84% आबादी गाँवों में बसती है जिसका मुख्य कार्य कृषि ही है।मानव समाज में अथवा मानव जीवन में सबसे अपरिहार्य "आहार" है।अपनी आवश्यकतानुसार मानव समाज को अपनी खाद्यपूर्ति के लिए प्रयत्न करना पड़ता है।पृथ्वी से अन्न , फल आदि खाद्य पदार्थों की उत्पत्ति करना कृषि कर्म है । कृषि कर्म करने वाले को ही "किसान"कहा जाता है।

    कृषि कार्य के ऊपर ही हमारा स्वास्थ्य, आहार व अर्थव्यस्था टिकी हुई है।कृषि विद्या की कुशलता से ही मानव उत्तम अन्न की उत्पत्ति कर सकता है।कृषि शब्द ' कृष् ' धातु से बना है , जिसका अर्थ है जोतना । मूल में कृषि शब्द का अर्थ हल चलाना था।हमारी वैदिक संहिताओं में कृषि विद्या का वर्णन व्यापक व स्पष्ट रूप से हुआ है। यदि हम वैदिक संस्कृति को कृषि संस्कृति भी कहे तो यह अत्युक्ति नहीं होगी। क्योंकि कृषि का अर्थ केवल भूमि खोदना मात्र नहीं अपितु पशुपालन आदि सब इसमें समाहित हो जाता है। ऋग्वेद के अनुसार अश्विन ने सर्वप्रथम आर्यों को हल के द्वारा बीज बोने की कला सिखाई ।कृषि का महत्त्व कितना है? यह हमें वेदों के अध्ययन से भली - भांति विदित हो जाता है। कृषक की कुशलता, कर्मठता तथा सहनशीलता की तुलना किसी से संभव नहीं है इसीलिए इनको त्यागी तपस्वी उद्धारक परिश्रमी भी कहा जाता है। किसान माटी के समृत होते हैं। वे मिट्‌टी से सोना उपजाते हैं। वे अपने श्रम से संसार का पेट भरते हैं। वे अधिक पढ़े-लिखे नहीं होते परंतु उन्हें खेती की बारीकियों का ज्ञान होता है । वे मौसम के बदलते मिजाज को पहचान कर तदनुसार नीति निर्धारित करने में दक्ष होते हैं । सचमुच प्रकृति के सहचर होते हैं अन्नदाता किसान।आजाद हिंदुस्तान से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात् एक लम्बी अवधि व्यतीत होने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में सिर्फ सूक्ष्म  अंतर दिखाई देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गणना उंगलियों पर की जा सकती है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। कृषि प्रधान राष्ट्र भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों का कृषि के विकास और किसान के कल्याण के प्रति ढुलमुल रवैया ही रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। बावजूद इसके किसानों की समस्याओं पर निम्न कोटि की राजनीति करने वाले ज्यादा और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले कम हैं। देश की अर्थव्यवस्था के विकास में किसानों का अहम योगदान है।  इसके बावजूद किसानों की समस्याएं कम होने की बजाए दिन ब दिन बड़ी व जटिल हो रही हैं। कृषि और किसान कल्याण को लेकर जब हम ठोस रणनीति की बात करते हैं तो उसमें सबसे पहले लघु और सीमांत किसानों की बात आती है जो लगातार हाशिये पर जा रहे हैं। यदि भारतीय परिदृश्य में कृषि और किसानों का कल्याण सुनिश्चित करना है तो इन्हीं किसानों को ध्यान में रख कर रणनीति और कार्ययोजना तैयार करनी होगी तभी जमीन पर कुछ अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं। विकास की दिशा में सबसे पहले बीज वितरण प्रणाली, सिंचाई सुविधा, वित्तीय सहायता, विपणन व्यवस्था, भंडारण सुविधा जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों को लघु एवं सीमांत वर्ग को ध्यान में रख कर नीति बनानी होगी। ऐसा इसलिए कि सक्षम किसान तो आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था खुद कर सकते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में कमजोर और संसाधन विहीन किसान पीछे छूट जाते हैं। इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए सबसे पहले परंपरागत कृषि उत्पादन की जगह नगदी फसलों को बढ़ावा देना होगा। फसल की प्राथमिकता तैयार करते समय देश-दुनिया की जरूरतों के साथ मौजूदा परिस्थितियों में उत्पादन क्षमता पर भी ध्यान केंद्रित करते हुए कार्ययोजना आगे बढ़ानी होगी। कृषि उत्पाद खरीद व्यवस्था को सशक्त और प्रभावी बनाना होगा जो किसानों के हितों का पूरा खयाल रख सके।चुनावी मौसम में विभिन्न राजनीतिक दलों की जुबान से किसानों के लिए हितकारी बातें अन्य मुद्दों के समक्ष ओझल हो जाती हैं। जिस तरह से तमाम राजनीतिक दलों से लेकर मीडिया मंचों पर किसानों की दुर्दशा का व्याख्यान होता है, उसमें समाधान की शायद ही कोई चर्चा होती है। इससे यही लगता है कि यह समस्या वर्तमान समय में सबसे अधिक बिकाऊ विषय बनकर रह गयी है। आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष हजारों किसानों की मौत का कारण फसल संबंधित बैंकों का कर्ज न चुकता कर पाने के दबाव में आत्महत्या करना है। यही नहीं, हमारे देश के लाखों किसान बढ़ती महंगाई को लेकर भी परेशान हैं, क्योंकि इसका सीधा नुकसान किसानों की स्थिति पर पड़ता है।कृषि व्यवस्था का स्वरूप देश में विकेंद्रीकृत और विविधता से भरा हुआ है, इसलिए क्षेत्रीय विशेषता को ध्यान में रख कर नियमन प्रक्रिया में लचीलापन लाया जाना चाहिए,केंद्र में इस बात का हमेशा खयाल रखा जाना चाहिए कि किसानों का किसी भी स्तर पर शोषण न हो।देश की लगभग सम्पुर्ण आबादी इस बात से पूरी तरह सहमत है कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या किसानों की दुर्दशा है। देश में किसानों की स्थिति लगातार गिरती जा रही है। पिछले 20 वर्षों में लगभग लाखों की संख्या में किसानों ने आत्महत्या की है। यही कारण है कि आज जगह-जगह किसानों के उग्र आंदोलन छेड़े जा रहे हैं।किसानों के सरोकार से जुड़ी 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन विश्व व्यापार संगठन द्वारा अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में भारत ने अपना पक्ष मजबूती से रखा था। वर्तमान केंद्र सरकार किसानों की प्रत्येक समस्या के लिए समग्र रूप से प्रयासरत है। इसके लिए वह गोदामों का निर्माण, कोल्ड स्टोरेज, रेफ्रीजरेटर वैन, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, सार्वभौमिक फसल बीमा, विद्युत आपूर्ति, समय पर ऋण और बाजार उपलब्ध कराने की कोशिश में लगी हुई है। कृषि प्रधान देश भारत में खेती-किसानी के क्षेत्र में दूरगामी नीति के साथ ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

    15 टिप्पणियाँ

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    1. Wahh bhaiya ji kya kaam kr the hai kisano ko aap ka sath chahiye jai jawan jai kisano🙏🙏

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    2. Wahh Bhaiya kya kaam kr rhe hai aap kisano ko aap ke sath ki jarrurat hai jai jawan jai kisano🙏🙏🙏

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    3. Usually I never comment on blogs but your article is so convincing that I never stop myself to say something about it. You’re doing a great job Man,Keep it up.

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      1. Usually I never comment on blogs but your article is so convincing that I never stop myself to say something about it. You’re doing a great job Man,Keep it up.

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